बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छतासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता
स्तनपान से लाभ
स्तनपान से माता तथा शिशु को निम्नलिखित लाभ होते हैं-
1. स्तनपान कराने से माता की वात्सल्य ममता बढ़ती है और शिशु को माता के संरक्षक व आरक्षण महसूस होता है।
2. माता का दूध स्वच्छ एवं जीवाणुरहित होता है, जिससे शिशु में किसी भी प्रकार के संक्रमण होने का भय नहीं रहता।
3. माता के दूध में अत्यधिक मात्रा में प्रोटीन एवं एण्टीबॉडीज होती हैं जो कि शिशु को कुपोषण से बचाती हैं तथा गम्भीर रोगों से शिशु की रक्षा करते हैं।
4. माता के दूध में शिशु के लिए जरूरी सभी प्रकार के पौष्टिक तत्त्व सरलता से प्राप्त हो जाते हैं।
5. माँ के दूध में लैक्टोज की मात्रा ज्यादा होने से शिशु को कब्ज अथवा अपच की शिकायत नहीं रहती।
6. माँ का दूध शिशु को सही तापक्रम पर प्राप्त हो जाता है। अतः उसे गर्म करने की जरूरत नहीं पड़ती।
7. माता के दूध में लैक्टोफैरिन नामक प्रोटीन होती है जो कि शिशु को आँत से सम्बन्धित रोगों से लड़ने के लिए क्षमता प्रदान करती है।
8. स्तनपान कराने से बच्चे में Sucking Reflex की संतुष्टि होती है तथा शिशु के मुख का व्यायाम भी होता है, जिससे उसके जबड़ों, मुख तथा गाल की मांसपेशियों के निर्माण में सहायता मिलती है तथा दाँत भी सही प्रकार से निकलते हैं।
स्तनपान की तैयारियाँ तथा पर्याप्तता
माता को स्तनपान कराने से पहले तथा बाद में अपने स्तनों को अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए। शिशु को जन्म के 8-10 घण्टे पश्चात् माता का दूध मिलता है। शिशु द्वारा माता के स्तनों से जो दुग्ध स्राव होता है, वह कुछ गाढ़ा तथा पीले रंग का होता है। इसमें प्रोटीन तथा एण्टीबॉडीज प्रचुर मात्रा में पायी जाती हैं।
स्तनपान की विधि
1. प्रारम्भ में शिशु को थोड़ी देर ही दूध पिलाना चाहिए क्योंकि बच्चा पाँच मिनट के पश्चात् अपनी इच्छानुसार दूध पी सकता है। बाद में समयावधि बढ़ा देनी चाहिए।
2. स्तनपान के पश्चात् स्तनों का खाली होना जरूरी है। इससे दुग्ध उत्पादन में वृद्धि होती है।
3. माँ को सदैव बैठकर दूध पिलाना चाहिए तथा शिशु का सिर घड़ से थोड़ा 'ऊपर रखना चाहिए। शिशु को सदैव चिन्तामुक्त होकर आराम की स्थिति में दूध पिलाना चाहिए। इससे दुग्ध का स्राव ज्यादा होता है।
4. स्तनपान कराने के पश्चात् माता को शिशु को कंधे से लगाकर उसकी पीठ थपथपा कर डकार दिलानी चाहिए, जिससे स्तनपान के दौरान शिशु के अन्दर गई वायु बाहर निकल जाए।
स्तनपान के बीच समय का अन्तर अथवा अवकाश
स्तनपान के मध्य अवकाश को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
1. समयानुसार स्तनपान - अधिकांश स्त्रियाँ, विशेषकर कामकाजी महिलाएँ अपने शिशु को समयानुसार दूध पिलाना ज्यादा पसन्द करती हैं, लेकिन समयानुसार स्तनपान कराना शिशु के लिए हानिकारक होता है, क्योंकि इस स्थिति में शिशु के भूखा न होन पर भी माँ उसे दूध पिलाने का प्रयास करती है और कभी-कभी शिशु भूख लगने पर भी काफी समय तक भूखा ही रह जाता है। समयानुसार स्तननान में शिशु को प्रत्येक तीन घण्टे बाद स्तनपान कराना चाहिए। रात्रि में शिशु को लगभग 6 घण्टे के अन्तर पर स्तनपान कराना चाहिए।
2. माँग स्तनपान या रोने पर स्तनपान — शिशु के रोने पर उसे स्तनपान कराने की माँग स्तनपान कहा जाता है, किन्तु यह जरूरी नहीं कि शिशु भूख के कारण ही रो रहा है। कभी-कभी अन्य कई कारणों; जैसे पेट में दर्द होना, कान में दर्द होना, बिस्तर का गीला होना अथवा अन्य किसी भी प्रकार की असहज स्थिति के कारण भी बच्चा रोने लगता है। फिर भी शुरू में शिशु के रोने पर उसे दूध पिलाना जरूरी है।
स्तनपान में बाधाएँ
निम्नलिखित परिस्थितियों में बच्चे को स्तनपान नहीं कराना चाहिए-
1. यदि माता शारीरिक अथवा मानसिक रूप से कमजोर हो।
2. यदि माता किसी गम्भीर रोग से पीड़ित हो; जैसे— उच्चताप, हृदय रोग, क्षय रोग, मिरगी, नेफ्राइटिस आदि।
3. शीघ्र ही गर्भ धारण करना।
4. स्तन रोग होने पर जैसे स्तन में मवाद, स्तन कैंसर, निपिल का खुरदुरा होना आदि।
5. शिशु के कटे होंठ या फटी तालू का होना।
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